नकारात्मकताओं से ग्रसित हमारी आजादी बेमानी


नकारात्मकताओं से ग्रसित हमारी आजादी बेमानी
नकारात्मकताओं से ग्रसित हमारी प्रजातंत्रिक व्यवस्था अंग्रेज पूंजीवादी प्रजातंत्रिक व्यवस्था से गहरे रूप से प्रभावित रही है। यद्यपि हमारी संविधान की प्रस्तावना में सभी नागरिकों की न्याय, समता, स्वतंत्रता को रेखांकित किया गया है। परंतु अंग्रेजों द्वारा बनाये गये कानून – कायदों के प्रचलन में बने रहने से हमारे न्याय, समता व स्वतंत्रता के अधिकार नकारात्मक रूप से बाधित होते आ रहे हैं, उदाहरण स्वरूप भू अर्जन अधिनियम 1894 जिसमें किसानों की लाखों एकड़ भूमि उनकी स्वतंत्र सहमति लिए तथा उचित प्रतिफल दिये बिना अर्जित कर लिया गया। यद्यपि पष्चातवर्ती समय में किसानों के लगातार आंदोलनों के दबाव में हमारी पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा भू – अधिग्रहण, पुर्नवास एवं पुर्नवसन में उचित प्रतिकर एवं पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 पारित किया गया है। जिसमें बाजार मूल्य के चार गुने मुआवजा व विस्थापन की स्थिति में पुर्नवास का प्रावधान किया गया है।
यहां सवाल यह है कि क्या उक्त अधिनियम में किसानों की स्वतंत्र सहमति लिये बिना भू अधिग्रहण को संविधान की अंगीकृत प्रस्तावना के अनुरूप कहा जा सकता है ?
यदि नहीं तो न्यायहित में उसे असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि स्वतंत्र सहमति लिए बिना कोई भूमि अंतरण वैधानिक नहीं होता। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भूमि किसानों की जीवन रेखा है और उनके लिए एक मां के समान है जो अनमोल है। हृदयहीन हमारी पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा किसानों की उक्त भावनाओं को नजरअंदाज करते हुए कार्पोरेटस जगत को लाभ पहुंचाने की नीयत से लाखों एकड़ भूमि अर्जित कर किसानों को आर्थिक व मानसिक हानि पहुंचाया गया है और यह प्रक्रिया निरंतर जारी है। क्या चंद पैसों से इनकी भरपायी संभव है। किसानों की मनोदशा को समझते हुए सर्वोच्च न्यायालय को किसानों के व्यापक हित में स्वमेव संज्ञान में लेकर उक्त पारित अधिनियम 2013 पर पुर्नविचार करते हुए संविधान की अनुच्छेद 142 के तहत उसे निष्प्रभावी घोषित करना चाहिए। शासन को यह विकल्प देना चाहिए कि वे प्रभावित किसानों की बिना दबाव स्वतंत्र सहमति लेकर अर्जित भूमि को पुन: अधिग्रहण का कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र है।
अंग्रेजों द्वारा निर्मित एैसे कई कानून है जो जटिल व नकारात्मकता से ग्रसित है, जो नागरिकों की संविधान प्रदत्त स्वतंत्रता को बाधित (सिमित) करते हैं। यह सब भ्रष्टाचार की जड़ है जिनकी आड़ में भ्रष्ट अधिकारी, कर्मचारी, राजनेता भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते आ रहे हैं जो जग जाहिर है। इसके निदान हेतु जटिल कानून कायदों का सरलीकरण की आवश्यकता है ताकि आम पब्लिक समझ सके। साथ ही व्यापक विधिक साक्षरता हेतु अभियान के तहत स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों में इसे समावेष किया जाना श्रेयष्कर होगा।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जाति, धर्म, संप्रदाय, लिंग भेदभाव को हमारी संवैधानिक व कानूनी व्यवस्था में समावेश तथा जाति आधारित आरक्षण से नकारात्मकता को बढ़ावा मिला है और नागरिकों की संविधान प्रदत्त न्याय, समता व स्वतंत्रता के अधिकार बाधित हुए हैं। अर्थात् उनकी आजादी पर ग्रहण लग गया है।
जहां तक मजहवी धर्मों की व्यवस्थाओं का संबंध है यह महिलाओं की संविधान प्रदत्त आजादी को नकारात्मक रूप से सिमित करते हैं और इसकी वजह से महिलाओं को दोयम दर्जे की जीवन जीने के लिए विवश कर दिया गया है। पति परमेश्वर को महिलाओं के करूण क्रंदन प्रभावित नहीं कर पा रहे हैं।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि नकारात्मकता से ग्रसित हमारी आजादी बेमानी बनकर रह गई है।
– भुवन लाल पटेल
अधिवक्ता,
बड़े रामपुर वार्ड क्रमांक 08
रायगढ़ सिटि (छ.ग.)